Wednesday, April 16, 2008

ये मेरी दुनिया नहीं !


रसिक वाचक हो ,मी माझ्या कंपनी तर्फे गेल्या वर्षी इटाली-मिलान येथे गेलो होतो.सगळेच लोक जे इथे हसतमुख असायचे , ते तिकडे जाऊन अर्ध्या हळकुंडाने पिवळे व्हायचे ! प्रत्येकाच्या चेहेर्‍यावर "मीच शहाणा!" चे भाव असायचे , प्रत्येकाला आपल्याला मिळत असलेल्या २३ यूरो "खर्ची" मधून जास्तीत जास्त यूरो कसे वाचवता येतात याचीच जास्त "चिंता".या जगात प्रत्येक शेरास सव्वा-शेर असतोच हे ह्यांच्या गावीच नाहे जणू ! तिथले सुंदर वातावरण - अर्थात् आपल्या दॄष्टीने जरासे "इंग्रजाळलेलेच म्हणा !" - पण ते उपभोगायची यांची इच्छाशक्तीच नाहिशी झालेली - कारण प्रत्येक जण "नोटा-डॉलर-यूरो" छापण्याच्या नादात इतका व्यस्त असायचा की त्यासाठी पोटाला पण पूर्ण खायचा नाही! पहिल्याच दिवशी हे सगळे लक्षात आले आणि जी कविता मला सुचली - ती ही कविता - मुद्दाम राष्ट्रभाषेत - हिंदी मधे लिहिली आहे जेणेकरून ती तमाम तिथल्या सो कॉल्ड "आपल्या" लोकांना कळावी ! यात कुणा एका विशिष्ट व्यक्तीचा उपहास करायचा उद्देश नाहिये ! पण एकूणच "डोळस्"पणे जगाकडे बघायची दॄष्टी असावी हे सांगण्याचा हा एक छोटासा प्रयत्न आहे !---------------उदय गंगाधर सप्रे-मिलान्-२५-फेब्रुवारी-२००७-सकाळी-०९.१५ वाजता


ये मेरी दुनिया नहीं !

क्या खूब समॉ है बाहर,जाडोंके दिनोंका है ये असर
दस फीट से बाहर कुछ दिखाई नहीं देता
कोहरेमें है दुनिया , धुंदलासा है ये जहॉ
"आशिक" मिझाझ हो उठ्ठे शायद मुर्दे भी यहॉ
पर मेरे "अपने" ही लोगोंकी मुसकान खो गई है कहॉ?
"तेईस यूरो" के "लेबल" लगाएं इन्सान है, बनिया नहीं
यूं तो ये लोग सभी मेरे अपने है, .....पर ये मेरी दुनिया नहीं !------------------!! १ !!

मौसम क तकाझा है , हर जवॉ दिल क इरादा है
जहॉ भी देखो इटालियन मर्द लडकीको चूमता है
देख उनका ये रंगीलापन् मेरा भी मन झूमता है
पर फिर "लटके हुवे"चेहेरोंका आईना घूमता है
मेरे देसकी लडकियोंके रुखसार पे जो छा जाती है शर्मसार की लाली
वो असर कहॉ तेरी गोरी चमडी पे मैडम्-ऐ-इटाली?
तूने देखा नहीं हिंदोस्तॉ ऐ इटालियन्, तो तू अभी जिया ही नहीं
यूं तो होंदोस्तॉनी भी यहॉ इटाली मं है.....पर ये मेरी दुनिया नहीं !....................!! २ !!

शायराना अंदाझ लेकर क्या खाक करें हम यहॉ?
डॉलर्-यूरो के हिसाब में निकलता हो हर किसीका दम् जहॉ
किसी हिंदोस्तॉनी के चेहेरेपे यहॉ मुस्कुराहट नहीं
ढूंडते है हम यहॉ शर्मो हया के रुखसार्-पर कुछ आहट नहीं
दुनियॉ तो हसीं है , पर हसके जीनेकी यहॉ चाहत नहीं
यहॉ सिर्फ "दिमाग" चलते हैं , दिल को मगर राहत् नहीं
कुछ ही दिनोमें लगता है, वतनका हक अदा किया नहीं
जिंदा लशें घूमती है मेरे ईर्द-गिर्द , हाय् .....ये मेरी दुनिया नहीं !....................!! ३ !!

मेरे अपने ही लोग मुझ्हे देखतें हैं पराई नजर से
डरता नहीं हुं मैं फिरंगियोंसे , मरता हुं पर ऐसे रह्-गुजरसे
जब दोस्त हो ऐसे जहॉ में , तो दुश्मन की जरूरत ही क्या?
बदन पे लाखों जख्म खाकर कोई जी भी ले शायद्
पर कहॉ बच पाएगा वो इस घुटन की असर से?
मैं कब्रस्तान में दिया जलाऍ ढूंडता हुं वो मझार
जिसके पैरोंतलें फूल खिलें हो हजार
याद रख ऍ हिंदोस्तॉनी, डॉलर्-यूरो के सिवा तूने
इस खुदगर्झ दुनिया से कुछ लिया नहीं
पर खुदा गवाह है इस बातका ऍ नादाँ
के नफरत के बदलेमें भी , हमनें प्यार के सिवा कुछ दिया नहीं !
जो दिनिया ने पाया-वो मैने पाया नहीं,
फिर मै क्यूं न कहूं , ये मेरी दुनिया नहीं ?....................!! ४ !!

साथी न कोई हमसफर , कोई "मिला-न" मुझे यहाँ
क्या इसिलिए भेजा था मुझे ऍ दोस्त "मिलान" यहाँ?
भूल जा अब तू तेरी भी जवाँ दिली
जी ले तू ये "सिकुडी" सी जिंदगी-जो भी मिली
गलती से अगर तू पाएं अपनी गली
जान ले ऐ दिल , "गलती से" तेरी किस्मत् तेरे साथ चली
मैं जहर का प्याला पी भी जांऊं हसते हसते हिंदोस्ताँ में
चाहे अमॄत् भी कोई दे मुझे लाकर तो वो भी मुझे यहाँ पीना-मियाँ नहीं
ये "तेरी" इटाली है ऍ दोस्त , ये मेरी "इंडिया" नहीं
ये तो सिर्फ रंगीला तेरा ही जहाँ है, .....ये मेरी दुनिया नहीं !....................!! ५ !!

1 comment:

Praaju said...

atishay sundar blog... kavitaahi chhan aahet. keep it up.